Tuesday, August 18, 2009

कुछ मेरी कलम से...

Here's a poem I wrote, :)

दिल के बहलाने को ये तराना ही सही
*वादा-ए-फर्दा ना सही, झूठा बहाना ही सही

कुछ तो दौलत चाहिए बसर करने को ज़िन्दगी
तेरी मोहब्बत ना सही, ग़म का खज़ाना ही सही

कहीं तो जाना होगा *ग़म-ए-हिज्र कैसे मिटाइए
तेरा कूचा ना सही, तो ये मयखाना ही सही

नींद ना आने के लिए क्या बहाना चाहिए
तुझसे गुफ्तगू ना सही, तेरा मुस्कुराना ही सही

देखना चाह था उसे पर वो मुड़ा न ए 'मनु'
उसका मिलना ना सही, तो सताना ही सही

- मनु चतुर्वेदी

वादा-ए-फर्दा = कल मिलने का वादा
ग़म-ए-हिज्र = जुदाई का ग़म


ये ग़ज़ल उस झूठे ख़याल को समर्पित है जो ये एतबार दिलाता है की वो इसे पढेंगे.

2 comments:

Pratik Maheshwari said...

ज़रूर पढेंगे..
अब ये दिल ठहरा जालिम.. कुछ तो गम उठाने पड़ेंगे इस मोहब्बत में..
वैसे दिल को छु लेने वाली कृति है ये..
आभार

SATYAANVESHI said...

Kaash ye sach hota :). Dhanyvaad!